स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन Summary Class 10

Stree Shiksha ke Virodhi Kutarko ka Khandan Summary Class 10

पाठ का सारांश

प्रस्तुत लेख विचारात्मक लेख है। इस लेख के माध्यम से लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ऐसी सभी पुरानी रूढ़ियों एवं परंपराओं का विरोध किया है जो स्त्री– शिक्षा को व्यर्थ अथवा समाज के विघटन का कारण मानती है। यह लेख पहली बार सितंबर 1914 की सरस्वती में ‘ पढ़े – लिखो का पांडित्य ’ नामक शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। बाद में ‘महिला मोद  ’ नामक पुस्तक में शामिल करते समय द्विवेदी जी ने इसका शीर्षक बदल कर ‘स्त्री–शिक्षा के विरोधी कुतर्को का खंडन ’ रख दिया। प्रस्तुत लेख में द्विवेदी जी ने सड़ी– गली परंपराओं को ज्यों के त्यों न अपनाकर अपने विवेकपूर्ण दृष्टि से फैसला लेकर ग्रहण करने के योग्य बातों को ही अपनाने के लिए कहा है। समाज में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए अनेक स्त्री– पुरुषों ने लंबा संघर्ष किया । लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से आगे निकल गई है। वर्तमान नवजागरण काल में स्त्री– शिक्षा के विकास के साथ-साथ जनतांत्रिक एवं वैज्ञानिक चेतना के संपूर्ण विकास के लिए अलख जगाया।

महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय– हिंदी के योग निर्माता, भाषा के संस्कारकर्ता एवं उत्कृष्ट निबंधकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1864 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के दौलतपुर नामक गांव में हुआ था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण शिक्षाक्रम सुचारु रुप से नहीं चल सका। अपने स्वध्याय से ही उन्होंने संस्कृत, हिंदी, बंगाली, मराठी, फारसी, गुजराती, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। वे तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचनाएं भेजने लगे। उन्होंने रेलवे के तार विभाग में नौकरी की। बाद में नौकरी छोड़कर पूरी तरह साहित्य सेवा में जुट गए। ‘सरस्वती ’ पत्रिका के संपादक का कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा से हिंदी साहित्य को नियंत्रित करके निखारा और उसकी अभूतपूर्व श्री वृधि की। सन् 1931 में काशी नगरी प्रचारिणी सभा ने इनको आचार्य की तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन ने ‘वाचस्पति ’ की उपाधि से विभूषित किया। सन् 1938 में हिंदी का यह है यशस्वी आचार्य परलोक वासी हो गया।

प्रमुख रचनाएं– महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की रचना संपदा विशाल है। उन्होंने 50 से भी अधिक ग्रंथ कथा सैकड़ों निबंध लिखे हैं।

उनकी प्रमुख रचनाएं हैं ‘रसज्ञ–रंजन ’ , ‘नाट्यशास्त्र’ , ‘हिंदी नवरत्न ’, ‘अद्भुत आलाप ’ , ‘साहित्य सीकरी ’ , ‘नेषध चरित्र–चर्चा ’ , ‘कालिदास की निरंकुशता ’ , ‘संपत्तिशास्त्र ’ , ‘हिंदी भाषा की उत्पत्ति ’ आदि। ‘काव्य मंजूषा’, उनका कविता संग्रह है।

साहित्यक विशेषताएं– महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं को विशेष बल प्रदान किया। उन्होंने हिंदी भाषा को संस्कारित व परिष्कृत किया। उन्होंने आरंभिक युग की  स्वच्छता और हल्केपन को नियंत्रित किया। उन्होंने समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता, कायरता, घूसखोरी जैसी बुराइयों पर छोट की। उन्होंने छुआछूत, बाल– विवाह, दहेज प्रथा, देश प्रेम जैसे विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। समालोचना को हिंदी साहित्य में स्थापित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है।

भाषा शैली– महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को भाषा का महान शिल्पी कहा जाता था। उनकी भाषा विकासोनमुखी भाषा थी। भाषा की विविधता उनके कार्य विविधता के सर्वथा अनुकूल है। उन्होंने अपनी रचनाओं में लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने संस्कृत की सुक्तियो का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा बोलचाल के बिल्कुल निकट है। उन्होंने अपनी रचनाओं में वर्णनात्मक विचारात्मक, भावात्मक तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग किया है। उन्होंने सबसे ज्यादा हिंदी साहित्य पर बल दिया।

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