बड़े भाई साहब Summary Class 10

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter-1 Bade Bhai Sahab Explanation

पाठ बड़े भाई साहब का सारांश

(1)

इस पाठ में लेखक प्रेमचंद अपने बड़े भाई साहब के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं कि उनके परिवार में बड़े भाई साहब है तो छोटे परंतु मुझसे वह बड़े हैं। बड़े भाई साहब उम्र में लेखक से पाॅंच साल बड़े हैं। मेरी उम्र नौ साल की थी और बड़े भाई साहब चौदह साल के थे। लेकिन तीन ही कक्षा आगे पढ़ते हैं। वह नौवीं कक्षा में थे, और मैं पांचवी में था। बड़े भाई साहब पाॅंच साल बड़े होने के कारण उनसे बड़ी आशाएं की जाती है। बड़े होने कारण वह खुद भी चाहते हैं कि वह कुछ ऐसा करें कि छोटे भाई के लिए वह एक प्रेरणा दायक हो। वह अपने पढ़ाई को सबसे प्रमुख मानते थे और अपनी पढ़ाई की नींव मजबूत करना चाहते थे इसलिए वह हर वक्त अपनी किताबें खोल कर रखते थे। मानो वह अपना बचपन भूल गए हो और अपने छोटे भाई को भी हमेशा पढ़ने को कहते थे पर उनका छोटा भाई शरारती व चंचल था।

लेखक का मन पढ़ाई में कम और खेलकूद में समझो ज्यादा रहता था। अगर बड़े भाई साहब उस एक घंटा भी पढ़ने कहते तो उसके लिए वह पहाड़ चढ़ने जैसा मुश्किल काम लगता था।पर वह अपना मन दबाकर किताब खोलकर बैठ जाते। लेकिन जैसे ही बड़े भाई का ध्यान उनकी तरफ से हटता, तो वह झटपट किताबे बंदकर हॉस्टल से बाहर मैदान में खेलने को भाग जाते थे। परंतु जब वह खेल खत्म कर वह घर लौटते हैं तो बड़े भाई साहब का गुस्से से लाल हुआ चेहरा देखते हैं। जिससे कि लेखक को बहुत डर लगता है और उनका पहला सवाल यही होता कि ‘कहाॅं थे?’और फिर बड़े भाई साहब लेखक को डांटते हुए कहते तुम बहुत सुस्त हो, तुम से पढ़ाई नहीं होती है। पढ़ाई करने के लिए दिन-रात आंख फोड़नी पड़ती है खून जलाना पड़ता है तब जाकर कुछ समझ में आता है। अगर तुम खेलकूद में ही अपनी जिंदगी को गवाना चाहते है तो घर वापस लौट जाओ और वहाॅं पर मजे से गिल्ली डंडा खेलते रहना। कम से कम दादा की मेहनत की कमाई तो खराब नहीं होगी? ऐसी ऐसी लताड़ सुनकर लेखक की सकल रोने सी हो जाती है और उन्हें लगता है कि पढ़ाई का काम उनके बस का नहीं है। परंतु कुछ समय बाद जब उसकी निराशा हट जाती तो वह फटाफट एक पढ़ाई-लिखाई का टाइम-टेबल बना लेता है। परंतु टाइम-टेबल बनाना एक बात है, उसका पालन करना एक मुश्किल भरा काम। जो कि लेखक से बिल्कुल नहीं हो पाता था खेलकूद के मैदान उन्हें बाहर खींच ही लाते थे इतने फटकार और डांट के बाद भी उन्हें अकल न आती  और वह खेल में शामिल हो ही जाते थे।

(2)

फिर सालाना परीक्षा हुई उसमें बड़े भाई साहब फिर फे़ल हो गए, परंतु उनके छोटे भाई लेखक पास हो गए और दर्जे में प्रथम आए थे। उनके बीच आप सिर्फ दो कक्षाओं की दूरी रह गई थी। लेखक के मन में आया कि वह अब अपने बड़े भाई को- आड़े हाथों लूॅं, उनकी वह घोर तपस्या कहाॅं गई? मुझे देखिए मैं खेलता भी रहा और दर्जे में अव्वल भी आया हूॅं। परंतु जब उन्होंने अपने बड़े भाई को दुखी और उदास देखा तो उन्होंने अपने इस विचार को त्याग दिया और खेलकूद में फिर व्यस्त हो गए। एक दिन तो छोटे भाई ने हद ही कर दी वह पूरा दिन खेलकूद में बिताकर आए तब बड़े भाई ने उन्हें जमकर डाॅंटा और कहा कि अगर कक्षा में अव्वल आने की वजह से तुम्हें घमंड आ गया है तो एक बार बड़ी कक्षा में आओ तुम्हारे इस घमंड की अलजेब्रा, ज्योमेट्री और इतिहास के सामने क्या ही हसती रहेगी। यह सब विषय बड़े ही कठिन होते हैं। बड़े भाई साहब बताते हैं कि बड़ी कक्षा में बादशाहों के नाम याद रखने में कितनी परेशानी होती है और कहते हैं कि परीक्षा में ‘समय की पाबंदी’ जैसे निबंधों पर चार-चार पन्ने लिखने पड़ते हैं। परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। स्कूल जाने का समय निकट था नहीं तो लेखक को और बहुत कुछ सुनना पड़ता। इतना सुनने के बाद उसे उस दिन का खाना निःस्वाद लगने लगा। लेखक सोचते हैं कि पास होने के बाद भी इतना डांट पकवा फटकार और तिरस्कार हो रहा है अगर मैं फेल हो जाता तो शायद मेरे प्राण ही ले लिए जाते लेखक कहता है कि जिस तरह बड़े भाई ने ऊंची कक्षा के पाठ के बारे में बताएं हैं मैं तो भयभीत सही हो गया परंतु इतनी डाॅंट फटकार के बाद भी उसकी रूचि अभी खेलकूद से खत्म नहीं हुई थी। खेलकूद का कोई भी अवसर हाथ से जाने नहीं देते थे और सभी खेलकूदों में शामिल होते रहते थे। 

(3)

फिर से सालाना परीक्षा हुए और कुछ ऐसा हुआ कि मैं फिर पास हो गया और बड़े भाई साहब फिर फेल हो गए। मैंने अत्यधिक परिश्रम नहीं किया था परंतु न जाने कैसे पास हो गया, मुझे खुद अर्चन हो रही थी कि मैं दरजे में अव्वल कैसे आ गया? बड़े भाई साहब ने तो अपने प्राण ही पढ़ाई में लगा दिए थे अपनी कक्षा के सभी किताबों के एक-एक शब्द वह चाट गए थे। सुबह के चार बजे से रात के आठ बजे तक वह किताब में ही घुसे रहते थे न जाने वो कैसे फेल हो गए। लेखक को अपने बड़े भाई पर दया आ रही थी। जब परिणाम सुनाया गया तो समझो मेरे बड़े भाई साहब टूट से गए और रोने पड़े उनके साथ मैं भी रो पड़ा। और अब मुझे उनके लिए बहुत दुख हो रहा था मेरे अव्वल आने की खुशी आधी सी हो गई थी। बड़े भाई अब नरम पड़ गए, उन्होंने छोटे भाई को डाॅंटना छोड़ दिया। लेखक के मन में अब यह धारणा सी बन गई कि वह पड़े या ना पड़े वह पास हो ही जाएगा।

एक शाम को लेखक हॉस्टल के बाहर एक पतंग के पीछे भागा जा रहा था तभी उसकी मुठभेड़ बड़े भाई साहब हो गई जैसे ही बड़े भाई ने लेखक को वैसे पतंग के पीछे भागते हुए देखा उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से से कहा कि तुम अब आठवीं कक्षा में आ गए हो और आठवीं में आने के बाद भी तुम यह सब कर रहे हो। एक जमाने में आठवीं कक्षा पास करके कई लोग तहसीलदार हो जाते थे, कई लीडर और कई पत्रकार बन जाते थे और तुम इस पद को महत्त्व  ही नहीं देते। 

बड़े भाई साहब लेखक को तजुर्बे का महत्व समझाते हैं। वह कहते हैं कि तुम भले ही मुझसे कक्षा में आगे निकल जाओ परंतु इस जमाने में तजुर्बा तुमसे ज्यादा मेरे पास रहेगा। वह अम्मा दादा का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भले ही तुम पढ़ लिखकर कितने बड़े ही अफसर बन जाओ परंतु तुम उनके तजुर्बे के बराबरी कभी भी नहीं कर पाओगे। व बीमारी से लेकर के घर के सभी कामों में हमसे ज्यादा उत्तीर्ण रहेंगे। यह सब बातें सुनकर लेखक बड़े भाई के सामने नतमस्तक हो जाता है और अपनी गलती का लेखक को एहसास हो जाता है। लेखक को यह भी महसूस होता है कि वह जो कक्षा में पास होते जा रहा है यह सीर्फ उनके बड़े भाई की डाॅंट फटकार की वजह से है। अगर बड़े भाई मुझे डाॅंटते नहीं तो मैं शायद एक घंटे के लिए भी न पढ़ने बैठता और आज मैं भी फेल हो जाता। इसी बीच एक कटी कनकौआ (पतंग) उनके ऊपर से लहराती हुई जा रही थी। उस समय बड़े भाई अपने बचपने की चंचलपन को रोक नहीं पाए और वह उस पतंग के पीछे भागने लगे क्योंकि बड़े भाई लंबे थे इसलिए उन्होंने पतंग की डोर थाम ली और अपने हॉस्टल के तरफ भागने लगे और लेखक भी उनके पीछे भागे-भागे जा रहे थे।

लेखक परिचय 

लेखक का जन्म 31 जुलाई 1880 मैं बनारस के करीब लमही गांव में जन्म हुआ। उन्होंने अपने मुख्य नाम धनपत राय रखा था पर उर्दू में नवाब राय और हिंदी में प्रेमचंद नाम से लेखन कार्य किया। परंतु अपना निजी व्यवहार और पत्राचार धनपत राय नाम से ही करते रहे। उनकी सबसे पहली उर्दू में प्रकाशित कहानी ‘सोजे़वतन’ अंग्रेजी सरकार ने जब्त कर लि थी। प्रेमचंद ने अपनी आजीविका के लिए स्कूल मास्टरी, इंस्पेक्टरी, मैनेजरी कर रखी है। परंतु इसके अलावा भी उन्होंने ‘हंस’, ‘माधुरी’ जैसी प्रमुख पत्रिकाओं को लिखा है। उन्होंने मुंबई की फिल्म नगरी में भी कुछ समय के लिए काम किया है। 

उन्होंने अपनी जिंदगी में अनेकों प्रमुख उपन्यास लिखी हैं। जैसे– गोदान, गबन, प्रेमाश्रम, सेवासदन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, कायाकल्प, प्रतिज्ञा और मंगलसूत्र (अधूरी)। यह सब जितनी भी कहानियां प्रेमचंद ने लिखी है वह सभी मानसरोवर शीर्षक से आठ खंडों में संकलित हैं।

उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रताड़न और लांछन लगे हुए लोगों को ही प्रमुख पात्र बनाया है और उन्हीं के लिए अपना जीवन बिताया है। आखिर में उनकी मृत्यु का दिन आ गया और उनकी देहावसान 8 अक्टूबर 1936 में हुई।

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बड़े भाई साहब प्रश्न और उत्तर Class 10

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