एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा प्रश्न और उत्तर Class 10

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika ahi thaiya jhulni hairani ho rama Questions and answers

अभ्यास के प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने  जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?

उत्तर- हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में लेखक ने टुन्नू व दुलारी जैसे पात्रों के माध्यम से उस वर्ग को उभारने की कोशिश की है जो समाज में हीन या उपेक्षित वर्ग के रूप में देखे जाते हैं। भारत की आज़ादी की लड़ाई में हर धर्म और वर्ग के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। इस कहानी के मुख्य पात्र वह काम करते हैं जिसका लोग आनंद तो लेते हैं पर ऐसे काम करने वालों को हिकारत की दृष्टि से देखते हैं। लेखक को भलीभाँति पता है कि ऐसे लोगों की कहानी में बहुत कम लोगों की दिलचस्पी होगी। इसलिए लेखक ने इसे एक प्रेमकथा की शक्ल दे दी है ताकि लोगों की रुचि बनी रहे। दुलारी द्वारा नए और महँगे वस्त्र को आंदोलन के लिए समर्पित करना बहुत अहम है क्योंकि अन्य लोग तो अपने फटे पुराने कपड़े ही सौंप रहे थे। दुलारी के उस कृत्य से पता चलता है कि उसके अंदर भी देशप्रेम कूट-कूट कर भरा था। ऐसा अक्सर होता है कि किसी भी बड़ी लड़ाई में लोग सिपाहियों के योगदान को भूल जाते हैं और केवल सेनापति को याद रखते हैं। दुलारी का यह कदम क्रांति का सूचक है। इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। लेखक ने इस कहानी में बड़ी कुशलता से इस योगदान को उभारा है।

प्रश्न 2. कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी?

उत्तर- दुलारी का स्वभाव नारियल की तरह था। वह एक अकेली स्त्री थी। वह स्वयं की रक्षा खुद करती थी। परंतु वह अंदर से बहुत नरम दिल की स्त्री थी। टुन्नू, जो उसे प्रेम करता था, उसके लिए उसके ह्रदय में बहुत खास स्थान था परन्तु वह हमेशा टुन्नू को दुतकारती रहती थी क्योंकि टुन्नू उससे उम्र में बहुत छोटा था। परन्तु ह्रदय से वह उसका प्रणय निवेदन स्वीकार करती थी। फेंकू द्वारा टुन्नू की मृत्यु का समाचार पाकर उसका ह्रदय दर्द से फट पड़ा और आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। उसकी मृत्यु ने टुन्नू के प्रति उसके प्रेम को सबके सामने समक्ष प्रस्तुत कर दिया। उसने टुन्नू के द्वारा दी गई खादी कि धोती को पहनकर टुन्नू के प्रति विचलित हो उठी।

प्रश्न 3. कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ और परंपरागत लोक आयोजनों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- उस समय कजली दंगल जैसी गतिविधियो आयोजनमात्र मंनोरंजन का साधन हुआ करता था। परन्तु फिर भीइनमें लोगों की प्रतिष्ठा का प्रश्न रहा करता था। पूर्वी उत्तरप्रदेश में इसके आयोजन के अवसर पर बड़ी भीड़ जुटा करती थी। इन कजली गायकों को बुलवाकर समारोह का आयोजन करवाया जाता था । अपनी प्रतिष्ठा को उसके साथ जोड़ दिया जाता था और यही ऐसे समारोहों की जान हुआ करते थे। उनकी हार जीत सब टिका हुआ होता था।

स्वतंत्रता-पूर्व इन अवसरों पर लोगों के बीच देश-भक्ति की भावना का प्रसार किया जाता रहा होगा। जिस प्रकार आज इस प्रकार के आयोजनों पर सामाजिक बुराइयों, जैसे-नशा, दहेज, भ्रूण-हत्या के विरुद्ध प्रचार किया जाता है। कजली दंगल जैसे कुछ परंपरागत लोक-आयोजन हैं-त्रिंजन पंजाब आल्हा-उत्सव राजस्थान रागनी-प्रतियोगिता हरियाणा फूल वालों की सैर दिल्ली आदि। इन सब आयोजनों में क्षेत्रीय लोक-गायकी का प्रदर्शन होता है। लोक-गायक इनमें बढ़ -चढ़कर भाग लेते हैं।

प्रश्न 4. दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- दुलारी बिशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी वह अतिविशिष्ट है| वहाँ के समाज के प्रतिष्ठित लोगों द्वारा इन प्रतिभावान व्यक्तियों और इनकी कलाओ को ठीक-ठाक मान-सम्मान नहीं दिया जाता था लेकिन इस प्रकार के समाज में भी दुलारी ने अपना कुछ अलग ही स्थान बना लिया था। वह जहाँ भी जाती उसे जीत ही हासिल होती था। दुलारी की मुख्य चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1.  दुलारी एक बहुत ही अच्छी गायिका थी, उसकी आवाज़ बहुत ही मधुर और सुरीली थी।

2. स्वाभिमानी- दुलारी बहुत ही स्वाभिमानी महिला थी। वह अपने स्वाभिमान का समझौता किसी के भी सामने एवं किसी भी स्थिति में नहीं करती थी।

3. देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता की भावना-दुलारी देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना के कारण विदेशी साड़ियों का बंडल होली जलाने वालों की ओर फेंक देती है।

4. दुलारी भले ही कठोर ह्रदय थी पर टुन्नू के लिए उसके मन में प्रेम था इसीलिए वह उसकी मृत्यु की खबर सुनकर बहुत ही विचलित हुई थी।

प्रश्न 5. दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ?

उत्तर-  दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय तीज के अवसर पर आयोजित ‘कजली दंगल’ में हुआ था। टुन्नू व दुलारी का परिचय भादों में तीज़ के अवसर पर खोजवाँ बाज़ार में हुआ था। जहाँ वह गाने के लिए बुलवाई गई थी। दुक्कड़ पर गानेवालियों में दुलारी का खास नाम था। और बड़े-बड़े गायक उसके आगे पानी भरते नज़र आते थे और यही कारण था कि कोई भी उसके सम्मुख नहीं आता था। उसी कजली दंगल में उसकी मुलाकात टुन्नू से हुई थी। टुन्नू दुलारी की ओर हाथ उठकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुस्कुराती हुई मुग्ध होकर सुनती रही। टुन्नू ने दुलारी को भी अपने आगे नतमस्तक कर दिया था।

प्रश्न 6. दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तें सरबउला बोल ज़िन्नगी में कब देखते लोट?…!” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए क्या संदेश छिपा है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- दुलारी जिस वातावरण में पली-बढ़ी थी, यहाँ आदमियों को कभी वफादार के रूप में नहीं जाना जाता था। तीज के अवसर पर कजली-दंगल में उपस्थित टुन्नू के प्रति यही भाव-विचार थे। दुलारी के जीवन में कभी कोई सच्चा प्रेमी नहीं आया था। सरदार फेंकू की तरह ही सभी स्त्रियों को कोटे में फंसी मछली मानते आए थे। दुलारी के विचार से टुन्नू भी फेंकू सरदार की तरह ही कोई दिल फेंकू आशिक रहा था। दुलारी के इस व्यंग्य-वाण में आज के युवाओं के लिए संदेश है कि पुरूष स्त्रियों को मात्र भोग्या वस्तु न समझें।

और दुलारी के इस कथन में युवावर्ग के लिए संदेश छिपा है कि उन्हें बढ़-चढ़कर व्यर्थ नहीं बोलना चाहिए। पता नहीं कब पोल खुल जाए। अतः अपनी औकात के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए।

प्रश्न 7. भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया?

उत्तर- यह कहानी स्वतंत्रता आंदोलन के समय को लेकर लिखी गई है। भारत की जनता विदेशी शासकों के विरुद्ध विभिन्न आंदोलन चला रही थी महात्मा गांधी जी ने राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन के तहत विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने पर बल दिया लोग स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने में लाने पर बल देने के लिए वस्तुओं विदेशी वस्तुओं को सार्वजनिक तौर पर जलाते थे। भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया। वे दोनों ही समाज के निम्न वर्ग से आते थे और सामान्य जन थे उसके पश्चात भी उन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

और वे विदेशी वस्त्रों के बाहिष्कार हेतु चलाए जा रहे आन्दोलन में दुलारी ने अपना योगदान रेशमी साड़ी व फेंकू द्वारा दिए गए रेशमी साड़ी के बंडल को देकर दिया। बेशक वह प्रत्यक्ष रूप में आन्दोलन में भाग नहीं ले रही थी फिर भी अप्रत्यक्ष रूप से उसने अपना योगदान दिया था। टुन्नू ने स्वतन्त्रता संग्राम में एक सिपाही की तरह अपना योगदान दिया था। उसने रेशमी कुर्ता व टोपी के स्थान पर खादी के वस्त्र पहनना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज विरोधी आन्दोलन में वह सक्रिय रूप से भाग लेने लग गया था और इसी

सहभागिता के कारण उसे अपने प्राणों का बालिदान देना पड़ा।

प्रश्न 8. दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी? यह प्रेम दुलारी को देश प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?

उत्तर-  दुलारी टुन्नू की काव्य प्रतिभा और मधुर स्वर पर मुग्ध थी। यौवन के अस्ताचल पर खड़ी दुलारी के हृदय में कहीं उसने अपना स्थान बना लिया था। टुन्नू भी उस पर आसक्त था परंतु उसके आसक्त होने का संबंध शारीरिक न होकर आत्मिक था। और ये प्रेम उनकी कला के माध्यम से ही उनके जीवन में आया था। दुलारी ने टुन्नू के प्रेम निवेदन को कभी स्वीकारा नहीं परन्तु वह मन ही मन उससे बहुत प्रेम करती थी। टुन्नू ने आबरवाँ की जगह खद्दर का कुरता, लखनवी दोपलिया की जगह गाँधी टोपी पहनना शुरू कर दिया। और दुलारी को गाँधी आश्रम की बनी धोती देता है। अंत में देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हो प्राण न्योछावर कर देता है। इन सबसे दुलारी भी प्रेरित हो उठती है। दुलारी का देश के दीवानों को विदेशी नए वस्त्र देना, टुन्नू की मृत्यु पर विचलित हो उसकी दी हुईखादी की धोती पहनकर उसके मरने के स्थान पर जाना और टाउन हॉल में उसकी श्रद्धांजलि में गाना-सभी देश-प्रेम की भावना को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 9. जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर से अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है?

उत्तर- स्वयंसेवकों द्वारा फैलाई चद्दर पर जो विदेशी वस्त्र फेंके जा रहे थे, वे अधिकतर फटे-पुराने थे। दुलारी द्वारा विदेशी वस्त्रों के ढेर में कोरी रेशमी साड़ियों का फेंका जाना यह दर्शाता है कि वह एक सच्ची हिन्दुस्तानी है, जिसके ह्रदय में देश के प्रति प्रेम व आदरभाव है। देश के आगे उसके लिए साड़ियों का कोई मूल्य नहीं है। यह उसके दृढ़-निश्चय तथा टुन्नू के प्रति उत्कट प्रेम का परिचायक है।

प्रश्न 10. “मन पर किसी का बस नहीं; वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परंतु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?

उत्तर-टुन्नू भावातिरेक में दुलारी की कला के प्रति आकृष्ट हुआ था। वह दुलारी से प्रेम करता था। वह दुलारी से उम्र में बहुत ही छोटा था। वह मात्र सत्रह-सोलह साल का लड़का था। दुलारी को उसका प्रेम उसकी उम्र की नादानी के अलावा कुछ नहीं लगता था। टुन्नू का यह कथन सत्य है। उसका प्यार आत्मिक था। उसका प्रेम शरीर से ना जुड़कर उसकी आत्मा से था और उसके मन में दुलारी के शरीर के प्रति लाभ नहीं बल्कि पवित्र स्नेह था। टुन्नू के प्रति उसके विवेक ने प्रेम को श्रद्धा का स्थान दे दिया टुन्नू के द्वारा बोले गए वचनों ने दुलारी के ह्रदय में उसके आसन को और दृढ़ता से स्थापित कर दिया। इसलिए उसे दुलारी की आयु या उसके रूप से कुछ लेना देना नहीं था। अब उसका स्थान अन्य कोई व्यक्ति नहीं ले सकता।

प्रश्न 11. एही तैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।

उत्तर- इस कथन का शाब्दिक अर्थ है कि मेरे इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग कहीं खो गई है, मैं किन्से पूछूँ? मेरी नाक में पहना जानेवाला लोंग सुहाग का प्रतीक है। और दुलारी एक गौनहारिन है उसने अपने मन रूपी नाक में टुन्नू के नाम का लोंग पहन लिया है। परन्तु यदि दुलारी की मनोस्थिति देखें तो जिस स्थान पर उसे गाने के लिए आमंत्रित किया गया था

उसी स्थान पर टुन्नू की मृत्यु हुई थी। इसी स्थान पर मेरा परम मुझसे दूर चला गया। दुलारी कहने का अर्थ है कि अब मेरा सुहाग लूट गया अब मेरे बस में नहीं है।

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