कबीर की साखी प्रश्न और उत्तर Class 10

NCERT Solutions for Class 10 Sparsh Chapter 1, “Kabir ki Saakhi,” provide comprehensive answers to the questions and exercises in this literary masterpiece. Students gain insights into the profound teachings and philosophy of the great poet-saint Kabir. These solutions enable a deeper understanding of Kabir’s verses, exploring themes of spirituality, humanity, and societal norms. By using these NCERT solutions, Class 10 students can appreciate the timeless wisdom of Kabir’s saakhis, fostering a holistic appreciation of literature and culture.

NCERT Solutions for Class 10 Sparsh Chapter 1 Kabir ki saakhi Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1. मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?

उत्तर: मीठी वाणी का प्रभाव चमत्कारी होता है इससे औरों को सुख और अपने तन को शीतलता प्राप्त होती है। मीठी वाणी बोलने से मन का अहंकार समाप्त हो जाता है और साथ ही हमारा अंतः करण भी प्रसन्न हो जाता है। मीठी वाणी के प्रभाव से मन में स्थित शत्रुता, कटुता और आपसी ईर्ष्या के भाव भी समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 2. दीपक दिखाई देने पर अंधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवि के अनुसार जिस प्रकार दीपक के जलने से अंधकार दूर हो जाता है उसी प्रकार ज्ञान रूपी दीपक जब हृदय में जलता है तो अज्ञान रूपी अंधकार मिट जाता है। यहां पर दीपक ज्ञान के प्रकाश का प्रतीक है और अंधियारा अज्ञान का प्रतीक है।

प्रश्न 3. ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?

उत्तर: हमारा मन अज्ञानता, अहंकार और विलासताओं में डूबा हुआ है। ईश्वर कण-कण में व्याप्त है फिर भी मन की अज्ञानता के कारण हम उसको पहचान नहीं पाते। उस परमात्मा को पाने के लिए ज्ञान का होना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए उसको देखने के लिए हमें अपने ज्ञान चक्षु को जागृत करना होगा।

प्रश्न 4. संसार में सुखी कौन है और दुखी कौन? यहां ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक है इसका प्रयोग यहां क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: संसार में उसी व्यक्ति को सुखी समझा जाता है। जो भोग विलास और इंद्र तृप्ति के लिए प्रयास करता है। तथा इसके विपरीत जो परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है या सच्चे ज्ञान को पाना चाहता है। उसको दुखी समझा जाता है। कबीर के अनुसार ‘सोना’का अर्थ है परमात्मा की प्राप्ति के लिए प्रयास न करना और ‘जागना’ का अर्थ प्रभु प्राप्ति के लिए किए जा रहे प्रयासों से है। इसका प्रयोग मानव जीवन में सांसारिक विषय-वासनाओं से दूर रहने तथा सचेत करने के लिए किया गया है।

प्रश्न 5. अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर: अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने निंदक को अपने सबसे निकट रखने का सुझाव दिया है। क्योंकि निंदक हमारा सबसे बड़ा हितेषी है। वह झूठी प्रशंसा कर अपना स्वार्थ सिद्ध नहीं करता और हमारे दुर्गुणों को हमारे सामने प्रस्तुत करता है। निंदक की आलोचना सुनकर और आत्मनिरीक्षण कर कर हम अपने स्वभाव को शुद्ध व निर्मल बना सकते हैं।

प्रश्न 6. ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सो पंडित होइ’- इस पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर: ‘ऐकै अषिर पीव का, पढ़े सो पंडित होइ’ पंक्ति के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है की ब्रह्मा ही सत्य है और उसे जाने बिना कोई भी ज्ञानी (पण्डित) नहीं बन सकता।

प्रश्न 7. कबीर की उद्धृत साखियों की भाषा की विशेषता स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कबीर जगह-जगह भ्रमण कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे इसलिए उनका अनुभव क्षेत्र विस्तृत था। उनके द्वारा रचित साथियों में अनेक भाषाओं के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसी कारण उनकी भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ और ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है। अपनी इसी चमत्कारी भाषा के कारण आज भी इनके दोहे लोगों की जुबान पर है।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए:

प्रश्न 1. बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।

उत्तर: कबीरदास जी कहते हैं की विरह एक सर्प के समान है जो शरीर में बसता है। इस विरह रूपी सर्प पर किसी भी मंत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और वह लगातार डसता रहता है। 

प्रश्न 2. कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढे बन मांहे।

उत्तर:  इस पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार मृग की नाभि में कस्तूरी रहती है। पर वह उसकी खुशबू से प्रभावित होकर उसे चारों ओर ढूंढता फिरता है। ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी अज्ञानतावश इस वास्तविकता को नहीं जानता की ईश्वर तो कण-कण में विद्यमान है। जिसके कारण वह उसे धार्मिक स्थलों, अनुष्ठानों, तीर्थों आदि में ढूंढता फिरता है।

प्रश्न 3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नांहि।

उत्तर: इसका भाव यह है कि जब तक मनुष्य के भीतर अहंकार की भावना रहती है तब तक उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती। लेकिन जैसे ही उसके ज्ञान रूपी चक्षु खुलते हैं और अहंकार की समाप्ति होती है तभी उसे ईश्वर की प्राप्ति होती है। क्योंकि अहंकार अंधकार के समान है और ईश्वर प्रकाश के समान।

प्रश्न 4. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।

उत्तर: कबीर जी के अनुसार बड़े-बड़े ग्रंथ, शास्त्र, वेदों आदि को पढ़ने से ही कोई ज्ञानी नहीं होता। जब तक वह ईश्वर से प्रेम नहीं करता और उसका स्मरण नहीं करता है तक उसे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती।

भाषा अध्ययन

1. पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप उदाहरण के अनुसार लिखिए- उदाहरण- जिवै – जीना

औरन, माँहि देख्या, भुवंगम, नेड़ा, आँगणि, साबण, मुवा, पीव, जालौं, तास ।

उत्तर:

शब्दप्रचलित रूप
औरनऔरों को
साबणसाबुन
माँहिमें (अंदर)
मुवामरा
देख्यादेखा
पीवपिया, प्रिय
भुवंगमभुजंग
जालौंजलाऊँ
नेड़ानिकट
आँगणिआँगन में
तासउस

योग्यता विस्तार

1. ‘साधु में निंदा सहन करने से विनयशीलता आती है’ तथा ‘व्यक्ति को मीठी व कल्याणकारी वाणी बोलनी चाहिए’- इन विषयों पर कक्षा में परिचर्चा आयोजित कीजिए।

उत्तर: छात्र परिचर्चा का आयोजन स्वयं करें।

2. कस्तूरी के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

परियोजना कार्य

1. मीठी वाणी/ बोली संबंधी व ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका पर लगाइए।

2. कबीर की साखियों को याद कीजिए और कक्षा में अंत्याक्षरी में उनका प्रयोग कीजिए।

उत्तर: मृगों की एक प्रजाति होती है-कस्तूरी मृग।

कस्तूरी, जो कि समृद्धि और महक का प्रतीक है, एक प्रमुख गंधद्रव्य है जो मुख्य रूप से मुश्क की मद में पाया जाता है। यह गंध के रूप में प्राकृतिक और आरोग्यकारक महत्व रखता है और धूप के समय मुश्क की गंध को मिलाकर बनाया जाता है।

कस्तूरी का उपयोग इत्र, सुगंध, कोलोनियों, और आरोग्य संबंधित उत्पादों में होता है। यह आरोग्य और सौंदर्य सेक्टर में भी उपयोग किया जाता है। कस्तूरी के विशेष गुणों के कारण, इसे घरेलू और औद्योगिक उत्पादों में उपयोग किया जाता है जैसे कि सुगंधित तेल, साबुन, इत्र, और कोलोनियों में।

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तुलसीदास राम लक्ष्मण परशुराम संवाद

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