पाठ: 2 ल्हासा की ओर (सारांश) Class 9

Chapter-2 lhasa ki aur (Summary) Class 9

लेखक

राहुल सांकृत्यायन

पाठ:सार

इस पाठ में लेखक ‘राहुल सांकृत्यायन’ जिनका जन्म 1893 ननिहाल गांव , जिला आजमगढ़ , उत्तर प्रदेश में हुआ था , बताते हैं कि वह तिब्बत जाने के लिए नेपाल के जिस रास्ते को वो उपयुक्त समझते थे हमारे देश की वस्तुएं भी उसी रास्ते से तिब्बत जाया करती थी। पूरे रास्ते में पुराने किले थे। जहां चीनी फौजें डेरा डाले हुए थी। वहां रूढ़िवादिता का कोई नामोनिशान नहीं था। वहां की औरतें पर्दा नहीं करती थी। वहां जाति – पाति , धर्म , छुआ-छूत नहीं है। और सबसे अच्छी बात कि वहां के लोग बहुत मददगार होते हैं। चाहे वे अपने जानने वाले हो या अनजान वे सभी की सहायता करते हैं। तिब्बत का विशेष पेय पदार्थ चाय है , जिसे आप जैसे चाहे वैसे ही बनवा सकते हैं। चोरी की आशंका के कारण अनजान लोगों को घर में घुसने नहीं दिया जाता नहीं तो , आप किसी को भी अपनी झोली से चाय निकलकर दे दें। उस घर की सास या बहू आपके लिए चाय तैयार कर देगी।
लेखक ‘राहुल सांकृत्यायन’ की भेंट मंगोल की एक भिक्षु सुमति से होती है। जिन्हें वहां के रास्तों का बहुत ही अच्छी समझ थी। क्योंकि वह पहले यहां आ चुके थे , वे एक भिखारी के भेष में थे। फिर भी उन्हें रहने के लिए एक अच्छी और सुरक्षित जगह मिल गई थी। परंतु जब वह 5 वर्ष के बाद एक समय यात्री के भेष में घोड़े पर सवार होकर इसी रास्ते से आए तब किसी ने उन्हें रहने के लिए जगह तक नहीं दी। लेखक बताते हैं कि अगले दिन उन्हें और सुमति जी को तिब्बत की एक सबसे अधिक ऊंचाई वाली जगह जिसका नाम था ‘थोङ्ला’, जो कि अत्यधिक ऊंचाई के साथ-साथ अत्यधिक जोखिम भरा भी था। जिसकी कुल ऊंचाई 16000 से 17000 फिट थी। जिसके कारण दूर-दूर तक कोई गांव नहीं था।

सरकार की नरमी का फायदा उठाकर , खतरनाक डाकू यहां आराम से आवास कर सकते थे।
लोगों से छिपने की जगह तथा सरकार की नरमी की वजह से यहां अक्सर आने जाने वाले यात्रियों की मौके पर लूटपाट करके उनका खून कर दिया जाता था। दूसरे दिन वें पहाड़ की खड़ी चढ़ाई पर चढ़ने के लिए अपने घोड़ों पर सवार होते हैं। और एक जगह पर चाय पीते हैं फिर दोपहर तक 17-18 हजार फीट ऊंचे डाँड़ें पर पहुंच जाते हैं। उन्हें दक्षिण-पूरब की ओर बिना बर्फ और हरियाली के नंगे पहाड़ दिखे और उत्तर की ओर पहाड़ों पर कुछ बर्फ दिखी। सबसे ऊंची जगह पर पत्थरों के ढेर रंग बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजा डाँड़ें के देवता का स्थान और जानवरों के सींग दिखे। उतरते वक्त लेखक राहुल सांकृत्यायन का घोड़ा धीरे-धीरे चलने की वजह से पीछे रह गया था।

जैसे ही वे रास्ते में आगे बढ़े, तो आगे दो ओर रास्ते फूट रहे थे। जिस रास्ते को लेखक ने चुना उस पर काफी दूर चलने पर पता चला कि वह रास्ता गलत है। इसलिए लेखक को वापस हटना पड़ा और तब सही रास्ते पर चलने लगे। जिसके कारण उन्हें गांव पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई।
वहां सुमति गुस्से से लाल थे और लेखक राहुल सांकृत्यायन की बहुत देर से प्रतीक्षा कर रहे थे। फिर लेखक कहते हैं कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं है। परंतु सुमति बहुत जल्द ही शांत हो गए। लङ्कोर में वह सही स्थान पर रुके थें। वहां उन्हें चाय, सत्तू और थुक्पा आदि पदार्थ खाने को मिला।
लेखक राहुल सांकृत्यायन के अनुसार अब वे एक ऐसे दुर्गम स्थान पर थे। जो पहाड़ों से घिरे टापू की तरह लग रहा था। सामने एक छोटी सी पहाड़ी दिखाई पड़ती थी जिसे तिङ्ऱी-समाधि गिरी के नाम से जाना जाता था। आस-पास के गांव में सुमति के बहुत से जान पहचान के रहने वाले थे। वे उनसे मिलना चाहते थे लेकिन लेखक ने उन्हें मना कर दिया और ल्हासा पहुंचकर पैसे देने का वादा किया। सुमति मान गए और उन्होंने आगे बढ़ना शुरू किया। अगली सुबह उन्हें कोई भी सामान ढ़ोने वाला नहीं मिला आग बरसती धूप में उन्हें चलना पड़ रहा था।

उस जगह की धूप बहुत कठोर थी। उनका सिर धूप से तिलमिला रहा था और पीछे कंधा ठंडा पड़ा था। उन्होंने पीठ पर अपना सामान लादा और सुमति के साथ शेकर विहार की ओर चल दिए। तिब्बत की जमीनें कई छोटे-बड़े जागीरदारों के हाथों में बंटी हुई है। इनका अधिकांश हिस्सा मठों में मिला हुआ है। अपनी-अपनी जागीर में हर जागीदार कुछ खेती स्वयं ही करते थे। जिसके लिए मजदूर उन्हें बेगार में ही मिल जाते थे। उनके सारे रखरखाव एक भिक्षु देखता था और वह जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता था। लेखक शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु नम्से से बहुत प्यार से मिले। वहां वे एक मंदिर में गए जहां बुध्दवचन-अनुवाद की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी हुई थी, वही लेखक का आसन भी लगाया गया, फिर लेखक उसे पढ़ने में लग गए।
इसी बात का मौका देख सुमति ने अपने यजमान (जान पहचान के लोग) से मिलकर आने के लिए लेखक से पूछा जिसके लिए लेखक मान भी गए थे। दूसरे दिन सुमति अपने यजमानओं से मिलने निकल गए और फिर उसी दिन दोपहर तक लौट आए। फिर उन्होंने अपना-अपना सामान अपने पीठ पर लादा और भिक्षु नम्से से विदाई लेकर चल पड़े।

शब्दार्थ :–

1. थोड्ंला – तिब्बत की सीमा का एक स्थान।

2. थुक्पा – तिब्बती वासियों का पारंपारिक भोजन जोकि चावल के साथ मूली , हड्डियों में मांस के साथ पतली लेई की तरह पकाया गया है।

3. भीटे – टीला या टीले के तरह एक ऊंचा स्थान।

4. भरिया – भारवाहक या कर्ज़ा चुकाने वाला।

5. भद्र – सज्जन (संभ्रांत) व्यक्ति।

6. पोथी – एक ग्रंथ या किताब।

7. परित्यक्त – त्याग दिया या छोड़ा हुआ।

8. पलटन – छोटा समुह या सेना।

9. गंडा – मंत्र पढ़कर गांठ लगाया हुआ धागा या कपड़ा।

10. गंडे मंत्र पढ़कर दिए गए कपड़े या धागे (मंत्र-पूत धागे)

11. कंडे गोबर के उपले।

12. यजमान – मानने वाले या यज्ञ करने वाले व्यक्ति।

13. आवास – रहना या बसे हुए।

14. बेगार – बिना किसी भाड़े या पैसे के काम पर लगना।

15. चौकियांँचुंगी पड़ाव।

16. मंगोल – मंगल एक वंश तथा उक्त जाति का व्यक्ति।

17. ललाट – मस्तिष्क या माथा।

18. डाँड़ा ऊंची जमीन।

19. राहदारी सफर करते हुए , राह पर लगने वाला कर (Tex)।

20. दाने क्विवस्तो – एक उपन्यासकार।

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