पाठ : 5 प्रेमचंद के फटे जूते सारांश Class 9

Chapter : 5 PremChand ke phate joote (summary) Class 9

लेखक

– (हरिशंकर परसाई)

पाठ का परिचय

प्रेमचंद जी’ हिंदी साहित्य के बहुत मशहूर लेखक थे। उनके द्वारा लिखी गई सभी कहानियाँ और उपन्यास पूरे विश्व भर में बहुत मशहूर हैं। प्रेमचंद जी की उपन्यास तथा कहानियाँ लिखने से इतनी आय नहीं होती थी की वे अपना जीवन आराम से जी सकें। इसी वजह से प्रेमचंद जी का जीवन बहुत कठिनाइयों तथा कमियों में बीता। उनका जीवन सादगी (सादापन) का नमूना था। पाठ के लेखक हरिशंकर परसाई जी ने प्रेमचंद जी का एक फोटो-चित्र लेकर व्यंग्य का विषय बनाया है। उस फोटो-चित्र में प्रेमचंद जी ने फटे जूते पहने हैं , लेखक ने इन्हीं फटे जूतों के माध्यम से समाज की बहुत सी असमानताओं और बुराइयों पर तीखा प्रहार किया है।

अब कहानी इस प्रकार है :-

लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ जी ने प्रेमचंद जी के फोटो-चित्र को देखते हुए उनके पहनावे के बारे में बताया हैं कि उन्होंने मोटे कपड़े की टोपी , कुर्ता और धोती पहनी हुई है। कनपटी दबी हुई हैं और गालों की हड्डियां उभरी हुई हैं। लेकिन घनी मूँछों से चेहरा भरा-सा लगता है। पैरों में केनवस के जूते हैं जिसमें से एक जूता आगे से फटा हुआ है। छेद से उंगली बाहर निकली हुई हैं। लेखक अपने मन में सोचते हुए कहता है कि यदि प्रेमचंद जी ने फोटो में ऐसे कपड़े पहने हैं , तो वे अपने दैनिक जीवन में कैसे कपड़े पहनते होंगे? लेकिन ऐसा कुछ नहीं है प्रेमचंद जी अपने दैनिक जीवन में जैसे कपड़े पहनते हैं वैसे ही इस फोटो-चित्र में भी पहने हुए हैं। अब लेखक प्रेमचंद जी के चेहरे को देखकर पूछते हैं कि उन्हें अपने फटे जूतों का पता है क्या उन्हें संकोच या लज्जा नहीं आती? लेकिन प्रेमचंद जी के चेहरे पर बेपरवाही और विश्वास है। प्रेमचंद जी से जब फोटो खिंचवाने के लिए तैयार होने को कहा गया होगा। तब वे मुस्कुराने की कोशिश कर रहे होंगे लेकिन जैसे ही उनकी मुस्कान ऊपर की ओर आ रही थी कि उनकी फोटो खींच गई। इस पर उनकी अधूरी मुस्कान का मजाक और व्यंग्य झलकता है।

लेखक ‘हरिशंकर परसाई’ जी , प्रेमचंद जी के ऊपर फिर से व्यंग्य करते हुए आश्चर्य से पूछते हैं कि प्रेमचंद फटे जूते पहनकर फोटो खिंचा रहे हैं और किसी पर हंस भी रहे हैं। वे किसी से अच्छे जूते माँगकर भी पहन सकते थे , लगता है वह अपनी पत्नी के कहने पर फोटो खिंचवा रहे होंगे। लेखक प्रेमचंद की फोटो को देख कर दुख महसूस करना तो चाहते हैं लेकिन नहीं कर पाते। लोग तो एक अच्छी फोटो के लिए कार और कोट भी मांगकर ले जाते हैं। लेखक समाज पर व्यंग्य करते हुए कहता है की लोग तो इत्र लगाकर खुशबूदार फोटो खिंचवाते हैं , जैसे कि उस फोटो में खुशबू आएगी! लेखक ने यह भी बताया कि सिर पर पहने जाने वाली चीज पैरों की चीज के मुकाबले सस्ती आती है। लेकिन फिर भी सिर पर पहने जाने वाली सस्ती चीज की अहमियत ज्यादा होती है। अर्थात फिर चाहे पैरों की चीज कितनी भी महंगी हो पैरों में पहनने से उसकी अहमियत कम हो जाती है। प्रेमचंद जी पर भी कुछ ऐसा ही भार रहा होगा। लेखक को एक महान कथाकार , उपन्यास सम्राट , युग प्रवर्तक का जूता फटा हुआ देखकर दुख हो रहा है। लेखक यह भी कहता है कि उनका खुद का जूता तलवे से फटा हुआ है और पैर के जख्मी होने पर भी उंगली दिखाई नहीं देती। लेखक जैसे लोग वास्तविकता को आडंबर के आवरण से ढक ना चाहते हैं जबकि प्रेमचंद जैसे व्यक्ति व्यक्तित्व सच्चाई और सादगी को अपनाते हैं।

लेखक प्रेमचंद के कई पात्रों का सहारा लेकर अपने प्रश्नो का उत्तर जानना चाहता है। लेखक कई अनुमान लगाता है। लेखक बार-बार एक ही प्रश्न के बारे में सोचता है कि प्रेमचंद जी का जूता घिसने की बजाय फट कैसे गया? शायद प्रेमचंद जी ने समाज मैं फैली बुराइयों को अपनी ठोकर से हटाने की कोशिश की होगी , वे इन ठोकरो से बचकर भी जा सकते थे जिस प्रकार सभी नदियां पहाड़ नहीं तोड़ सकती तो वह अपना रास्ता ही बदलकर बह जाती हैं। प्रेमचंद जी को भी नदियों की तरह बचकर निकल जाना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि वह भी अपने पात्रों की तरह नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति थे। लेखक फिर से पैर की उंगली के बारे में कहता है की अगर हमें किसी को घृणित (तुच्छ , नीच या खराब) कहना है तो हम उसे पैर की उंगली दिखाकर इशारा करते हैं। लेखक समझ गए कि प्रेमचंद जी समाज में फैले हुए भेदभाव को देखकर मुस्कुरा रहे हैं। वे समाज के अवसरवादी और मतलबी लोगों पर व्यंग कर रहे हैं। जो लोग सच्चाई को छुपाते हैं , मेहनत से बचकर निकलते हैं प्रेमचंद्र जी उन पर हँस रहे हैं। प्रेमचंद जी का ही मानना था कि मैं यथार्थ का सामना करते हुए आगे बढ़ा , दुःख किंतु अपने अस्तित्व , अपने मान-सम्मान को नष्ट करते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में वे अपना जीवन किस प्रकार व्यतीत कर सकेंगे? आखिर में लेखक यही कहता है कि वे उनके द्वारा दिए गए इशारों को अच्छे से समझ गए हैं।



शब्दार्थ :-

1. क्लेश– दुख , दर्द।

2. इत्र– गंध , खुशबू।

3. पन्हैया– जूती।

4. बंद– जूतों के फीते।

5. बेतरतीब– क्रमहीन।

6. नेम-धरम– धर्म के नियम।

7. घृणित– घृणा के योग्य।

8. अभावों– कमियां।

9. पुरखा– पूर्वज।

10. अहसास– अनुभव।

11. बेपरवाही– निश्चिंतता।

12. उपहास– मजाक।

13. ट्रेजेडी– दुखांतता।

14. हौसला– हिम्मत।

15. बिसर गयो– भूल गया।

16. विडंबना– विषम व्यंग्य।

17. प्रवर्तक– चलाने वाले।

18. कुर्बान होना– न्योछावर।

19. पस्त होना– ढीली पड़ना।

20. समझौता– निपटारा या निर्णय।

21. परम-पर-परम सदियाँ– बहुत प्राचीनकाल।

22. अनुपातिक मूल्य– कीमतों का अनुपात।

23. तगादा– अपना पावना बार-बार मँगाना , तकाजा।

24. कनपटी– कान और आंख के बीच का जगह।

25. पतरी– तस्मे के सिरों पर लिपटा लोहे का पतला खोल।



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